शनिवार, 13 सितंबर 2008

हमारी ओकात बताते धमाके

दिल्ली में हुए बम धमाकों से जो एक बात सामने आ रही वह यह की भारत का न तो कोईहर सुरक्षित है न कोई आदमी । लगता है जैसे देशभर में सिर्फ़ आतंकवादियों का कब्जा है वे जब चाहे जहा चाहे कुछ भी कर सकते है और हमारी सरकार सिर्फ़ निंदा करने के अतिरिक्त कुछ नही कर सकती । आज जब कही बम के साथ मानव अंगो के चिथड़े उड़ते है तो आश्चर्य नही होता बल्कि अपनी कीमत का एहसास होने के साथ ही भारतीय राजनीति के पराभाव के रसातल में पहुच जाने का दुःख जरूर होता है । आज हमारा मूल्य [ यानि हिन्दुओ ] एक वोट का भी नही रहा । वोट तो मुस्लिमो का कीमती हो चला है तभी हमारे राजनेता सिमी का समर्थन करते है गिरफ्तार सिमी कार्यकर्ता के घर जाकर सान्तवना देते है बांग्लादेशियो को नागरिकता की वकालत करके अपने आप को जाने क्या समझते है। बम धमाकों के बारे में टीवी और समाचार पत्रों में बहुत कुछ देखने और पढने को मिल जाएगा विचार मंथन होगा लेख लिखे जायेंगे चर्चाये होंगी। आप इतना कुछ होने के बाद भी सिर्फ़ उपभोक्ता बनकर रह जायेंगे टीवी चेनलो की टीआरपी बढ़गी । हमे क्या मिलेगा ? हमारे खोये हुए परिवार वालो पडोसियों और सबसे बड़ी बात नागरिको को कौन लौटाएगा । हम सिर्फ़ सनात्वना से ही संतुष्ट होरहेंगे या फ़िर कुछ कदम भी उठाएंगे । कहावत है घर का भेदी लंका ढहाए जो मूर्त रूप में सबके सामने है । आख़िर कब तक हम इन्हे अल्पसंख्यक कह कर इन्हे अलग होने का एहसास करते रहेंगे। ये मन लेना चाहिए की हम इनके सहयोग के बिना भारत के विकास की कल्पना भी नही कर सकते । आज जरूरत सबको समान दर्जा देकर एक एकीक्रत भारत बनाने की है न की समुदायों , पंथो और सम्प्रदायों के आधार पर नागरिको की पहचान वाले भारत की । आज अपना देश कबीलों में बटे प्रान्त की तरह होरा जा रहा है जहा एक कबीला अपने कबीले वालो को जनता है दूसरे उसके शत्रु होते है। कंही बाल और राज ठाकरे है जो प्रान्त तक सीमित है तो कंही कश्मीर के गुलाम मानसिकता वाले विचित्र प्राणी । इन सबसे ज्यादा दुखदायी है हमारी सरकार का कथित रूप से पन्थानिरापेस्छ होना । आप भी अपने आप से सवाल कीजिये इन बम धमाको के लिए क्या सिर्फ़ जाँच एजेन्सी और नेताओ को दोष देकर हम अपने कर्तव्यो की इतिश्री समझ लेंगे राष्ट्र निर्माण में हमारी कोई भूमिका बस इतनी ही है । एक गलत चयन कैसे सारे देश को नुकशान पंहुचा सकता है सबके सामने है। वक्त जागने का है और राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर उसके प्रति अपने भावो और कर्तव्यों के निर्वाह के प्रदर्शन का है ।

6 टिप्‍पणियां:

शोभा ने कहा…

वाह ! बहुत सुंदर लिखा है. आपका स्वागत है

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

आपके विचारों से सहमत हूँ।

सवाल विकल्प ढूँढने का है। सबसे अच्छी कही जाने वाली राजव्यवस्था (लोकतंत्र) में हम देश को योग्य नेता नहीं दे पा रहे हैं।

जाएं तो जाएं कहाँ...?

شہروز ने कहा…

श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
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http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

आज जरूरत सबको समान दर्जा देकर एक एकीक्रत भारत बनाने की है न की समुदायों , पंथो और सम्प्रदायों के आधार पर नागरिको की पहचान वाले भारत की ।

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बधाई कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें