सोमवार, 2 मार्च 2020

धर्मनिरपेक्षता क्या जरूरी है

आज देश में धर्मनरपेक्षता पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए। इसे परिभाषित किए जाने की जरूरत है। 
हमें तो पढ़ाया गया है धर्म वो है धारण किया जाए, जीवन जीने की पद्धति है। ऐसी परिभाषा विश्व का अन्य कोई धर्म नहीं दे सका है, ना ही किसी धर्म में वसुधैव कुटुंबकम जैसा सूत्र वाक्य पढ़ने को मिलता है। हिंदुओं से अधिक धर्मनिरपेक्ष कोई हो ही नहीं सकता, कारण यह है कि धर्म को अपने तरीके से धारण करने का अधिकार हमें जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता है। हमारे दादा- दादी, पिता-माता अपने-अपने तरीके से पूजा पाठ करते हैं। हमें छूट मिलती है कि हम अपने तरीके से पूजा पाठ करें या ना करें। मंदिर कब जाएं कब ना जाएं सिखाया तो जाता है लेकिन, अनिवार्य थोपी नहीं जाती, यही कारण है कि हम लोग किसी भी त्योहार या दिनविशेष में मंदिरों के बाहर सड़क पर खड़े होकर आरती नहीं करते हैं। मेरा मानना है कि अन्य कोई भी वह धर्म धर्म ही नहीं है, जो अपनी मान्यताओं को जबरदस्ती धारण कराने का प्रयास करता हो और थोपने का भी। 
इसके साथ ही मेरा मानना है कि उन शब्दों और स्वतंत्रता को संविधान से हटा देना चाहिए, जो हमें इतना निरंकुश व व्यभिचारी बना दें कि देश से पहले हैं अपने मनगढ़ंत विचारों की अभिव्यक्ति आजादी को आजादी मनाने लगें। अभिव्यक्ति की आजादी तभी अच्छी है जब राष्ट्रवाद पर हावी न हो।