मंगलवार, 23 सितंबर 2008

चुनाव

हो जाओ सावधान आ रहे है चुनाव

सब तरफ होगा घमासान

खीचा जाएगा आपका ध्यान

हो जाओ सावधान आ रहे हे चुनाव

सबके घर पर आयेंगे पैरो पर ध्यान लगायेंगे

नए मुद्दे और नारे सुनायेंगे

जीना दूभर कर देंगे प्रचार

जीतने के बाद हम वैसे भी है बेकार

पर आप रहे होशियार

क्या हम इतने हो चुके बेकार

अपना भला बुरा भी न समझ सके

अब तो जागो और इन्हे भी जगाओ

यही तो मौका है क्योंकि आ रहे है चुनाव

सोमवार, 15 सितंबर 2008

आत्ममुग्धता

आतंकवाद ज्यादा खतरा राजनेताओ की मानसिकता से होता जा रहा है। अब देखिये कि ग्रह मंत्री शिवराज पाटिल दिल्ली में हुए बम धमाको को दिवाली पर फोडे जाने वाले पटाखे से ज्यादा नै समझ रहे थे तभी ३ घंटे में ३ बार पोशाक बदलते रहे। ये बात किसी कीभी समझ से परे है कि किसी सम्पभु राष्ट्र का ग्रह मंत्री कैसे इतनी निर्लज्जता का प्रदर्शन कर सकता है। जन्हा उन्हें धमाको कि जानकारी एकत्रित करनी चाहिए थी वे गरीब देश कि जनता को अपने वस्त्र खजाने का प्रदर्शन करने से बाज नही आए । इसे संवेदनहीनता कि पराकास्था नही तो और क्या कहा जायगा। एक व्यक्ति जो आपने चुनाव श्चेत्र से भी जीत दर्ज न कर पाये उससे ५४५ श्चेत्र वाले राष्ट्र कि सुरस्क्चा का दायित्व क्यो दिया गया। उसका परिणाम सबके सामने है । उनको पड़ से हटा कर अपनी गर्दन बचने का प्रयास करने वालो को सामूहिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए । चार साल तक निर्दोष लोगो को मरवाते रहे अब चुनाव कि आहट आते ही उसे नाकारा और भ्रमित मंत्री सिद्ध करने लगे। बहुत सोचने और दिमाग के सरे घोडे दौडाने के बाद भी समझ में नही आ रहा कि कैसे हम अपने राष्ट्र को भयमुक्त और भ्रष्टाचार विहीन बना सकते है । फ़िर ख्याल आया कि पाटिल का मामला भ्रष्टाचार का नही है यंहा तो ग़लत तरीके से जीत हाशिल [ विश्वास मत ] करने वाली सरकार के एक आत्ममुग्ध मंत्री का है जो सोचता है कि मेरे पोशाक बदलने और सौम्य लहजे में बोलने से आतंकवादी इम्प्रेश होकर रास्ता बदल लेंगे तो ये उनकी भूल नही मानसिक बीमारी का परिचायक है।

शनिवार, 13 सितंबर 2008

हमारी ओकात बताते धमाके

दिल्ली में हुए बम धमाकों से जो एक बात सामने आ रही वह यह की भारत का न तो कोईहर सुरक्षित है न कोई आदमी । लगता है जैसे देशभर में सिर्फ़ आतंकवादियों का कब्जा है वे जब चाहे जहा चाहे कुछ भी कर सकते है और हमारी सरकार सिर्फ़ निंदा करने के अतिरिक्त कुछ नही कर सकती । आज जब कही बम के साथ मानव अंगो के चिथड़े उड़ते है तो आश्चर्य नही होता बल्कि अपनी कीमत का एहसास होने के साथ ही भारतीय राजनीति के पराभाव के रसातल में पहुच जाने का दुःख जरूर होता है । आज हमारा मूल्य [ यानि हिन्दुओ ] एक वोट का भी नही रहा । वोट तो मुस्लिमो का कीमती हो चला है तभी हमारे राजनेता सिमी का समर्थन करते है गिरफ्तार सिमी कार्यकर्ता के घर जाकर सान्तवना देते है बांग्लादेशियो को नागरिकता की वकालत करके अपने आप को जाने क्या समझते है। बम धमाकों के बारे में टीवी और समाचार पत्रों में बहुत कुछ देखने और पढने को मिल जाएगा विचार मंथन होगा लेख लिखे जायेंगे चर्चाये होंगी। आप इतना कुछ होने के बाद भी सिर्फ़ उपभोक्ता बनकर रह जायेंगे टीवी चेनलो की टीआरपी बढ़गी । हमे क्या मिलेगा ? हमारे खोये हुए परिवार वालो पडोसियों और सबसे बड़ी बात नागरिको को कौन लौटाएगा । हम सिर्फ़ सनात्वना से ही संतुष्ट होरहेंगे या फ़िर कुछ कदम भी उठाएंगे । कहावत है घर का भेदी लंका ढहाए जो मूर्त रूप में सबके सामने है । आख़िर कब तक हम इन्हे अल्पसंख्यक कह कर इन्हे अलग होने का एहसास करते रहेंगे। ये मन लेना चाहिए की हम इनके सहयोग के बिना भारत के विकास की कल्पना भी नही कर सकते । आज जरूरत सबको समान दर्जा देकर एक एकीक्रत भारत बनाने की है न की समुदायों , पंथो और सम्प्रदायों के आधार पर नागरिको की पहचान वाले भारत की । आज अपना देश कबीलों में बटे प्रान्त की तरह होरा जा रहा है जहा एक कबीला अपने कबीले वालो को जनता है दूसरे उसके शत्रु होते है। कंही बाल और राज ठाकरे है जो प्रान्त तक सीमित है तो कंही कश्मीर के गुलाम मानसिकता वाले विचित्र प्राणी । इन सबसे ज्यादा दुखदायी है हमारी सरकार का कथित रूप से पन्थानिरापेस्छ होना । आप भी अपने आप से सवाल कीजिये इन बम धमाको के लिए क्या सिर्फ़ जाँच एजेन्सी और नेताओ को दोष देकर हम अपने कर्तव्यो की इतिश्री समझ लेंगे राष्ट्र निर्माण में हमारी कोई भूमिका बस इतनी ही है । एक गलत चयन कैसे सारे देश को नुकशान पंहुचा सकता है सबके सामने है। वक्त जागने का है और राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर उसके प्रति अपने भावो और कर्तव्यों के निर्वाह के प्रदर्शन का है ।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

बिहार की त्रासदी

बिहार में आयी बाढ़ एक लंबे समय तक याद रखी जाने वाली मानवीय भूल का तमाचा है जिस का भुगतान आम जन को करना पड़ रहा है । समय रहते इस पर ध्यान दिया जाता तो इसे टाला जा सकता था । परन्तु सबक सीखना हम भारतीयों की मानसिकता में ही नही है । ये तय है की भाषण बाजी करके अपने अपने राजनितिक स्वार्थो के हित पुरे करने के अतिरिक्त और कुछ भी नही किया जाएगा । हम सभी को जागने के साथ अपने अधिकारों को समझ कर कर्तव्यों का भी निर्वाह करना होगा जिसमे सही व्यक्ति का चयन करने की समझ विकसित करना अनिवार्य होगा ।

बिहार की त्रासदी